20 तक पढाई - 23 तक सेटलमेंट - 25 तक शादी - 28 तक बच्चे
इसे वे सही वक्त कहते हैं ..।
"समय रहते सब हो जाएँ तो बेहतर है..", ऐसी सोच रखते हैं..
खैर इसमें कोई खराबी नहीं ।
पर "जो इस सोच से परे है वे गलत" इस बात से मुझे परेशानी हैं।
सही समय की पाबंदी मिडीऑकर रखते हैं,
जिनकी राहे औरों से जुदा है, उनके रास्ते आम नहीं हो सकते।
जिनके सपने बड़े होते हैं, वे बाॅक्स के अंदर खडे नहीं होते ।
"हाँ, सत्ताइस की हूँ और अब भी कुँवारी हूँ..।"
क्योंकि, मेरे मम्मा पापा ने मुझे दुनिया की तौर तरीकों से बडा नहीं किया..
लडकी हूँ इस बात का हर घड़ी एहसास नहीं दिलाया..
उन्होंने मुझे साॅफ्ट स्पोकन येट अ डिसीजन मेकर बनाया..
पोलाईटनेस के साथ प्राइड भी सिखाया..
देखो भाई, सिंपल सी बात है..
"एक्सट्रा ऑर्डीनरी पॅरेंटींग रेजेस् एक्सट्रा ऑर्डीनरी किडस्
एन्ड एक्सट्रा ऑर्डीनरी पीपल डोन्ट लीड एन ऑर्डीनरी लाईफ"
सो, आय डोन्ट बिलीव्ह इन "सही वक्त" स्टफ
माय फंडा इज-
• किसी और के नाम से जुड़ने से पहले, अपना नाम तो कमालु..
• किसी और की अर्धांगनी बनने से पहले, पुरी तरह अपनी तो हो लू..
• कल संकट की घड़ी में उसके कंधे से कंधा लगा सकूं,
खुद को उतना क़ाबिल तो बना लु..
• कल जितने अभिमान से मैं उसे अपने दोस्तों से मिलांऊ,
उतने अभिमान का हकदार अपने आप को भी तो बनाऊं..
भाई, चार पहियों की गाडी है ये,
एसयुव्ही के दो पहियों से स्कुटी के पहियें कैसे लगाऊं..??
मेरी 👆 बात हर किसी के पल्ले पड़ेगी.. ऐसी उम्मीद भी नही है..
क्योंकि, चांद को देखने के लिए स्पेसशीप ना सही,
पर एटलीस्ट एस्ट्रोनाॅमी बायनॅकुलर्स तो चाहिए ना..
डिअर पॅरेन्टस्,
अगर सही मायने में अपने बच्चों का भला चाहते हो तो
सही वक्त नही सही परवरिश की मिसाल रखें..
उन्हें आजादी दे, रिस्पाॅसीबीलीटी का एहसास उन्हें अपने आप होगा..
आप उन्हें चीजों के सही-गलत पैमाने जरूर बताएं..
पर फैसले लेने का हक़ मत छीनें..
अगर अपनी परवरिश पर भरोसा है, तो उनके फैसलोंपर भी भरोसा रखिए ..
कल जाके वे गलत भी साबित हो तो उसका जिम्मा खुद लेंगे
ना की जिंदगी भर आपको कोसेंगे..।
अपने बच्चों को इस "सही वक्त" के सोशल प्रेशर से दूर रखें
क्योंकि सही बात के लिए कोई सही वक्त नहीं होता,
और सिर्फ वक्त देखकर लिया फैसला हमेशा सही नहीं होता..।