Saturday 15 January 2022

सासरी आई शोधायची नसते


सासरी आई शोधायची नसते..

कारण, आई ची ऊब,
आई ची माया,
आईचा ओलावा,
आईपरि गोडवा,
फक्त आईत असतो..

आपली सगळी नाटकं..
आपले फालतू चे हट्ट..
आपल्या रागाचा पारा..
आपल्या मुड स्वींग चा मारा..
फक्त आई झेलणार सारा..

सासरी ना, ती आई शोधायची नसते..
ती आई स्वताःत उतरवायची असते.
आग्रहाचे दोन घास आपण सर्वांना भरवायचे,
सर्वांच्या सेवेस आई परि तत्पर रहायचे..

पन्नाशीतल्या सासु ची आपणच आई व्हायचं..
त्यांना आरामात कसं ठेवता येईल यासाठी झटायचं..
त्यांनी सांभाळली ना सर्वांची वेळापत्रकं इथवर, 
आता, आपण सांभाळायचं..
नसते त्यांना सुध स्वतःच्या खाण्यापिण्याची..
थोडं चिडायचं ही हक्काने, कारण त्याशिवाय आई पुर्ण होत नाई.. 

जगासमोर खुप कठोर असणार्या सासर्यांना ही असतो एक हळवा कोपरा..
आई होऊन त्यांची बोलतं करायचं असतं त्यांना..
असते त्यांना काळजी घरातल्या प्रत्येकाची,
आपण च तर द्यायची असते ना त्यांना निवृत्ती..

आपली आई असतेच की माहेरी,
पण त्या दोघांची आई गेलेली असते देवाघरी..
त्यांना त्या मायेची अन् आधाराची गरज आपल्या पेक्षा जास्त असते..
म्हणून सासरी आई शोधायची नसते, ती आई स्वतःत उतरवायची असते..

Tuesday 31 August 2021

Normalize being Nice

I came across a post on fb that spoke about "Normalizing being Nice- Complimenting people for something they are good at.. and it will make their day."

Isn't it a wonderful thing...?

Everyone around us, is giving his/her best to serve their families and their people.. But let's ask ourselves, "Are they appreciated enough??"

When someone tries something new, how often do we support their guts, instead of criticizing their stand?

When someone wins something, how often do we congratulate them with our full heart, instead of calling it "a luck by chance"??

When someone gets successful, how often do we feel proud, instead of feeling jealous???

We use words like "got lucky" and take away their whole credit.. 

We call them "fortunate" and overlook all the hardwork they carried on.. 

We address them as "the destiny's favorite child" and totally ignore all the efforts, they continued when 100s of their earlier attempts failed..

If someone is good at something, it's not genetic but an effect of practice, persistence and patience... 

Nothing comes easy... No wonder happens overnight... There is no such thing as magic...

So, we must appreciate those, who have achieved something.

We must support those, who are trying new things.

We must thank those, who get us things beyond their scope of action.

Coz, when things are cherished, they flourish...

Monday 5 April 2021

क्योंकि सर सलामत, तो पगडी पचास..

"नो लाॅकडाऊन" के नारे लगाने से कोरोना का स्प्रेड रुक जाएगा क्या??

सरकार के निर्बंध हटाने से कोरोना का खौफ हट जाएगा क्या??

बिझनेस लाॅस की बाते सुनाकर, जान पर आयी मुसीबत टल जाएगी क्या??


दोस्तों, ये समय मुनाफ़े और नुकसान के बारें में सोचने का नहीं..

माना, बैंक लोन के हफ्ते है, घर के, शाॅप के किराए है, रोज मर्रा के कईं खर्चे है, पैसे की दिक्कत तो आएगी..

पर, कमाने के चक्कर मे जान जोखिम में डालना, क्या सही होगा??

अपने और अपने फैमिली की सुरक्षा को नजरअंदाज करना, क्या सही होगा??

आपसे ही मुस्कुराहट है आपके अपनों के चहरे पर, उसे दांव पर लगाना, क्या सही होगा??

सरकार के निर्बंध पर टिप्पणीया करने से पहले जरा सोचो, सरकार की नजर में आप महज एक नंबर हो.. आपको कुछ हो गया तो सरकार को कितना ही फर्क पडना है..

पर एक दफा अपने फैमिली के और देखिए, आपको खो दिया तो उनके पास क्या बचेगा..

लाॅकडाऊन आपको टाॅर्चर करने के लिए नही, आपको सेफ रखने के लिए है..

आपकी जान बचाने की सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है और आप जान हथेली पर लेकर घुमना चाहते है.. इसे ना समझी की हद ना कहें तो और क्या कहें??

Friday 26 March 2021

Call a friend for No reason..


We have 100s of friends in our contact list.. There was a time when we knew them in n out... but now when we hear their names, we wonder what they might be up to these days..

नहीं पता हमें, वो कैसे है, किस हालात में है..

जब तक जरूरत नहीं पडती तब तक बातें करना तो दूर hi-hello जितना भी contact कहाँ होता है..

याद नहीं मुझे, पिछली बार कब किसी दोस्त से यूहीं बेमतलब बात की हो.. याद नहीं मुझे, पिछली बार कब बस हाल चाल जानने के लिए पहल की हो..

We are just a click away from each other, पर फासले फिरभी कितने हैं ?

Everything is on our finger toe, पर फिर भी अज्ञान कितना हैं ?

We have so many social platforms जहा हम घंटों active रहते है.. पर हममें से सच मेें socially active कितने है?

Everyone has their profiles, walls and status bars.. पर हम फिर भी उन्हे जानते ही कितना है ?

We have a wide network today.. but we still lack in connections.. what an irony it is..!

If you think it's true and needs to be changed, Let's start

Let's be more social in real lives than just on FB or Insta.. 

Let's recreate the bonds we cherished some years back..

Let's not be so self centered and agenda driven..

Let's talk for asking no favors.. but just for the sake of the talk..

Let's connect to our contacts.. Let's call a friend for no reason..

Tuesday 1 September 2020

"सही वक्त"



 20 तक पढाई - 23 तक सेटलमेंट - 25 तक शादी - 28 तक बच्चे
इसे वे सही वक्त कहते हैं ..।
"समय रहते सब हो जाएँ तो बेहतर है..", ऐसी सोच रखते हैं.. 
खैर इसमें कोई खराबी नहीं ।
पर "जो इस सोच से परे है वे गलत" इस बात से मुझे परेशानी हैं।

सही समय की पाबंदी मिडीऑकर रखते हैं, 
जिनकी राहे औरों से जुदा है, उनके रास्ते आम नहीं हो सकते।
जिनके सपने बड़े होते हैं, वे बाॅक्स के अंदर खडे नहीं होते ।

"हाँ, सत्ताइस की हूँ और अब भी कुँवारी हूँ..।"
क्योंकि, मेरे मम्मा पापा ने मुझे दुनिया की तौर तरीकों से बडा नहीं किया..
लडकी हूँ इस बात का हर घड़ी एहसास नहीं दिलाया..
उन्होंने मुझे साॅफ्ट स्पोकन येट अ डिसीजन मेकर बनाया..
पोलाईटनेस के साथ प्राइड भी सिखाया..

देखो भाई, सिंपल सी बात है..
"एक्सट्रा ऑर्डीनरी पॅरेंटींग रेजेस् एक्सट्रा ऑर्डीनरी किडस्
एन्ड एक्सट्रा ऑर्डीनरी पीपल डोन्ट लीड एन ऑर्डीनरी लाईफ"
सो, आय डोन्ट बिलीव्ह इन "सही वक्त" स्टफ

माय फंडा इज-
• किसी और के नाम से जुड़ने से पहले, अपना नाम तो कमालु..
• किसी और की अर्धांगनी बनने से पहले, पुरी तरह अपनी तो हो लू..
• कल संकट की घड़ी में उसके कंधे से कंधा लगा सकूं,
खुद को उतना क़ाबिल तो बना लु..
• कल जितने अभिमान से मैं उसे अपने दोस्तों से मिलांऊ,
उतने अभिमान का हकदार अपने आप को भी तो बनाऊं..
भाई, चार पहियों की गाडी है ये,
एसयुव्ही के दो पहियों से स्कुटी के पहियें कैसे लगाऊं..??

मेरी 👆 बात हर किसी के पल्ले पड़ेगी.. ऐसी उम्मीद भी नही है..
क्योंकि, चांद को देखने के लिए स्पेसशीप ना सही,
पर एटलीस्ट एस्ट्रोनाॅमी बायनॅकुलर्स तो चाहिए ना..

डिअर पॅरेन्टस्, 
अगर सही मायने में अपने बच्चों का भला चाहते हो तो 
सही वक्त नही सही परवरिश की मिसाल रखें..
उन्हें आजादी दे, रिस्पाॅसीबीलीटी का एहसास उन्हें अपने आप होगा..
आप उन्हें चीजों के सही-गलत पैमाने जरूर बताएं..
पर फैसले लेने का हक़ मत छीनें..
अगर अपनी परवरिश पर भरोसा है, तो उनके फैसलोंपर भी भरोसा रखिए ..
कल जाके वे गलत भी साबित हो तो उसका जिम्मा खुद लेंगे
ना की जिंदगी भर आपको कोसेंगे..।

अपने बच्चों को इस "सही वक्त" के सोशल प्रेशर से दूर रखें
क्योंकि सही बात के लिए कोई सही वक्त नहीं होता,
और सिर्फ वक्त देखकर लिया फैसला हमेशा सही नहीं होता..।

Tuesday 28 April 2020

कहाणी लाॅकडाऊन की


“सपनों का शहर सो रहा है”, ऐसा तो पहली बार ही हो रहा हैं। घड़ीके काटों पर जो भगाता था, वो वक्त लगता है जैसे थमसा गया है।
"आजादी" खोई इस महामारीके दौरमें, पर काफी कुछ पाया भी हैं। रोजगार गवाया है, पर फिरभी कुछ कमाया है।

ईंट से ईंट जोड़कर मकान बना लिया था, आज पुरा परिवार साथमें बैठा तो “घर” बन गया। 
जिन्होंने खो दिया था बचपन, रोज मर्राकी जिंदगीके चलते, वे दिखाई देते है बच्चोंके साथ खेलते। मानो जैसे जिंदगीने दुसरा मौका दिया हो, अनमोल लम्होंको फिरसे जीने के लिए। 
भूक लगने पर जो उंगलियां मोबाइलपर घूमती, वो आजकल आटा गुनने लगी हैं। नेटफ्लिक्स, प्राईम व्हिडीओ की जनरेशन यूट्यूब पर दादी की रेसीपी ढूंढने लगी हैं। 
बच्चे पालनाघरमें नहीं, अपने घरोंमें खेल रहें हैं। A-B-C-D नहीं, रामायण-महाभारत के पाठ पढ़ रहें है।

वैसे देखा जाए तो, सुनहरी है ये कैद, पर "जबरदस्ती" रास कहाँ आती है, फिर वो आराम की ही क्यूँ ना हो। तभी तो आरामसे दुनिया थक गयी हैं, जिससे फ़ुरसत चाहते थे, उसी काम की कमी खल रही हैं।

विपदाकी घड़ीमें इन्सान की नस्ल का अनोखा परिचय हो रहा है। कहीं “संयम का पालन”, कहीं “मूर्खता का प्रदर्शन” हो रहा है। कोई जान बचाने में जुटा है, कोई लुटाने पर अड़ा है, कुछ अपनों से दूर हैं कर्तव्यपालन के लिए, वहीं ऐसे भी हैं कुछ अक्ल के अंधे, जो अपनेही घर में नहीं रह पाते। 

खैर “आगे क्या होगा?” ये तो वक्त ही बताएगा, “पर कब?” ये सवाल हर वक्त सताएगा।

Wednesday 8 April 2020

लग्न- नातं कि बंधन..


मैत्री चं स्थान या जगात इतकं उच्च का आहे माहितीये??
कारण ती रंग-वर्ण, जात-पात बघून जोडली जात नाही तर स्वभाव आणि विचारांवर आधारलेली असते..

तिथे सौदा नसतो, ती अगदी साधी असते,
तिथे औदा न बघता परस्पर आदर जपला जातो.
ती निखळ असते, निर्विकार असते..
जिथे कृष्ण राजा नसतो, सुदामा शूद्र नसतो ती एकमात्र मैत्री असते.

मैत्री ची जागा कोणतंच नातं घेऊ शकत नाही.
कारण ती नाळेनं जोडली, म्हणून सख्खी असत नाही.
ती जन्मजात मिळत नाही... मन जिंकून जोडावी लागते...
ती जबरदस्ती बांधलेलं बंधन नसते, ती मनापासून निभावलेलं नातं असते...

मग प्रश्न पडतो कि आयुष्यभर जे नातं जपायचंय ते "लग्न", मैत्रीत करावं कि नातलगात??
जिथे नाडी-पत्रिका जुळते तिथे बांधावं कि जिथे मनं जुळतात तिथे जोडावं??
जिथे जात मिळते तिथे टिकेल कि जिथे स्वभाव आणि विचार जुळतात तिथे बहरेल??

सगळ्या गोष्टी चोखंदळासारखे निवडणारे आपण स्टेटस लेबलस् आणि जातीचे टॅगज् बघून "लग्न बंधन" जोडतो हे विडंबन नाही तर काय??
माणूस म्हणून पारख करण्यापूर्वीच जे वर्थलेस फिल्टरस् आपण लावतो त्याने काय साध्य करतो??

अहो, मनं तोडून घरं जोडली जातात का कधी??
लग्न प्रतिष्ठेसाठी नव्हे तर पूरकतेसाठी करायला हवं.. ज्याला दोन जीवांचा मेळ म्हटलं जातं ते कुणाच्या अंतर्मनाच्या राखेची साक्ष देत असेल तर काय अर्थ त्या नवजीवनाला??